Monday 19 January 2015

Different Culture and Gorgon Nut


चीन की प्राथमिक चिकित्सा वयवस्था (Primary Healthcare System )में देसी उत्पादों का अधिक से अधिक उपयोग किया जाता है। वहॉ मखाने को Qian Shi नाम से जाना जाता है। सम्पूर्ण पौधे को सुखाकर जीवाणुरहित बनाकर फिर चूर्ण बनाया जाता है और Vacuum-Sealed थैले में पैकिंग कर उसका विपणन  किया जाता है।
       
                                     अभी हाल  में भारतीय वैज्ञानिको ने मखाना (लावा )के चूर्ण (Powder) के पानी में आसानी से नहीं डूबने (उत्प्लवनशील होने ) के गुण का उपयोग एक Non-effervescent floating matrix tablet बनाने में किया है जिसकी मदद से मनुष्य के शारीर के भीतर दवा के उचित ढंग से प्रभावी निस्तरण करना संभव हुआ है। जीतेन्द्र सिह नैगी के नेतृत्व में  वैज्ञानिको का यह शोधपपत्र Asian Journal of Pharmaceutics में प्रकाशित हुआ है।

                                   कोरिया के Kyunynam विश्व में किये गए एक अध्ययन में अल्जीमर एवं पार्किन्सन सदृश जन्य रोगो में मखाने के करे विजावरण (Euryale shell/seed coat) से भारतीये वैज्ञानिको  ने एक Novel Smart Mucoadhesive Biopolymer बनाया है जिसका उपयोग मानव के शरीर में दवाओं के समुचित निसतरन Drug delivery में किया जा सकेगा। मखाना के Seed coat से सम्बन्धित एक अन्य शोध में चीन के Hefei University of Technology एवं Chuzhou University के   वैज्ञानिको ने यह पता लगाया है की इसमे Triterpenoid सदृश के जैव रसायनो की अधिकता होती है जो ग्लूकोज के चयापचय को नियत्रिन्त करने में सहायक होती है। इसका निष्कर्ष Extract यकृत Liver एवं प्लीहा Spleen के बढ़े भार को नियंत्रित करता है। Seed coat में उपस्थित Hypoglycaemic गुणों से संबद्ध यह शोधपत्र Molecules नामक जर्नल में प्रकाशित   हुआ है। एक अन्य शोध में चीनी वैज्ञानिको ने मखाना के Seed Shell extract  को मांस के संग्रहण के दौरान उसमे Lipid oxidation को रोकने में गुणकारी पाया है।
                           
                                मखाना को एक अवयव के रूप में सम्मिलित कर चीनी वैज्ञानिको ने एक ऐसा Herbal Suppository बनाकर उस पर Patent प्राप्त की है जो Allergic rhinitis,sinusitis,Nasal congestion, Nasal dripping ,Nasal polyps सदृश रोगों में गुणकारी पाया गया है।

                                अन्य फसलो की जैविक खेती से प्रेणा लेकर मखाना उत्पादक किसान भी ' जैविक  मखाना ' के उत्पादन की ओर उन्मुख  हो रह है। अपेक्षाकृत अधिक पूँजी वाले किसान इस दिशा में उदहारण प्रस्तुत कर सकते है। आमतौर पर इसमे दिक्क़त यह है की मखाना जलाशय की चारों ओर उँचे खेतो में प्रयुक्त अवशिस्ट जैवरसायन [रासायनिक उर्वरक ,मरकनाशी (Pesticides) आदि ] को वर्षा के पानी के साथ बहकर आने से रोक नहीं जा सकता है।  बाजार में उपलब्ध मखाना लावे के रासायनिक विश्लेषण के क्रम  में हमने पाया की Organochlorine pesticides  की अवशिेस्ट मात्रा निधार्रित मानको से ज्यादा थी।  विकसित देशो में OrganicMakhana के निर्यात की संभावना को बढ़ानो के लिए हमे इस तथय् की ओर ध्यान देना होगा।

                                भारत में  मखाना का उपयोग एक हवन-सामग्री के रूप में भी होता आया है । आमतौर पर लावे का प्रयोग इस हेतु होता है । हाल में लखनऊ स्थित राष्ट्रीय वनस्पति अनुसन्धान के संस्थान के Division of Plant – Microbe Interactions के वैज्ञानिकों ने मखाने के सुखे पौधों को अपने प्रयोग में सम्मिलित किया और परिणाम में यह पाया की इससे वायुमण्डल  में उपस्थित जीवाणुओ की सघनता  में काफी कमी आयी । यह शोध निष्कर्ष Medicinal Smoke Reduces Airborne Bacteria नाम से प्रतिष्ठित अंतराष्ट्रीय शोधपत्रिका Journal of Ethnopharmacology में छपा है ।

For more information visit www.gorgonnut.com              

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